इस वर्ष केवल दो सूर्य ग्रहण दिखाई देंगे। सूर्य ग्रहण एक खगोलीय प्रक्रिया है जिसमें सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के सम्मिलित रूप से अलग-अलग स्थितियां बनाने से सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण होते हैं। खगोल विज्ञान में अध्ययन और शोध की दृष्टि से ये दोनों घटनाएँ काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक काल गणनाओं पर आधारित हैं इसीलिए इनके द्वारा खगोलीय घटनाओं का भी सटीक विश्लेषण किया जा सकता है।

कब और कैसे होता है सूर्यग्रहण ?

सूर्य ग्रहण एक खगोलीय प्रक्रिया है सूर्य और पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा के गति करते हुए आ जाने से उत्पन्न होती है। यह घटना केवल अमावस्या को ही होती है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण दोनों घटनाओं का महत्वपूर्ण फलादेश विश्लेषण किया जाता है। इनमें कुछ परम्पराएँ वैज्ञानिक रूप से तार्किक भी हैं और कुछ में केवल अन्धविश्वास हो सकता है।

साल 2020 में कब है सूर्य ग्रहण ?

वर्ष 2020 में कुल छह ग्रहण लगेंगे, इनमें से चार चंद्र ग्रहण होंगे और दो सूर्य ग्रहण होगा। पहला ग्रहण चन्द्र ग्रहण के रूप में 10 जनवरी को और आखिरी ग्रहण, सूर्य ग्रहण होगा जो दिसंबर माह में लगेगा।

ज्ञात रहे 2019 आखिरी ग्रहण भी सूर्य ग्रहण था जो 26 दिसम्बर को लगा था। इस सूर्य ग्रहण को भारत समेत देश के कई भागों में देखा गया।

क्या है सूर्य ग्रहण 2020 के समय और तारीख

पहला सूर्य ग्रहण :

21 जून

ग्रहण का समय:

सुबह 9:15 से दोपहर 3:04 तक  

पूर्व ग्रहण (Full Eclipse) :

सुबह 10:17 से 2:02 तक, सबसे ज्यादा प्रभाव 12:10 बजे तक 

कहां-कहां दिखेगा:

एशिया, भारत और दक्षिण पूर्व यूरोप

 

दूसरा और साल का अंतिम सूर्य ग्रहण:

14 दिसंबर 2020 

ग्रहण का समय:

14 दिसंबर शाम 7:03 बजे से 15 दिसंबर को 12 बजे तक 

कहां दिखेगा ग्रहण:

यह भारत में नहीं दिख पाएगा, इसे प्रशांत महासागर में देखा जा सकेगा 

कितने प्रकार का होता है सूर्य ग्रहण ?

सूर्य ग्रहण की घटना पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा के आ जाने पर होता घटित होता है. चंद्रमा की अलग-अलग स्थितियों के कारण तीन प्रकार के ग्रहण होते हैं-

  • पूर्ण सूर्यग्रहण : इस स्थिति में जब चन्द्रमा पृथ्वी के पास होता है और सूर्य व पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य का पूरा प्रकाश पृथ्वी पर आने में रूकावट उत्पन्न हो जाती है। इस समय लगभग पूर्ण अन्धकार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
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  • वलयाकार सूर्यग्रहण : जब चंद्रमा पृथ्वी से दूरी पर होता है लेकिन सूर्य को ढक लेता है। इस स्थिति में सूर्य का बाहरी भाग एक रिंग के रूप में चमकता है. इसे वलयाकार सूर्यग्रहण कहा जाता है।
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  • आंशिक सूर्यग्रहण : इस स्थिति में चन्द्रमा की आंशिक छाया पृथ्वी पर आती है जो आंशिक सूर्यग्रहण के रूप में जाना जाता है।
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सूर्य ग्रहण की घटना के पीछे कुछ सामान्य मान्यताएं भी होती है जो वैज्ञानिक अवधारणाओं से जुड़ी होती हैं। ज्योतिष शास्त्र में दोनों तरह के ग्रहणों को लेकर महत्वपूर्ण फलादेश हैं। खगोल विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान में समान रूप से ग्रहण की घटनाओं के प्रत्येक पहलु का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाता है। जानिए आर्थिक प्रगति के ज्योतिषीय उपाय अब फोन पर भी पं. पवन कौशिक : +91-9999097600