कृष्ण, जिनका नाम जिह्वा पर आते ही एक मनोहर छवि बनकर मन में सामने आती है। मोरमुकुट सर पर लगाये, होठों से बांसुरी बजाते हुए, पैरों को टेढ़े करके खड़े हुए बांके बिहारी। गोकुल की गलियों से मथुरा के राजभवन और फिर कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में श्री कृष्ण ने अपनी अलग-अलग लीलाएं दिखाई। गोकुल की गलियों में घूमने वाले इसी नटखट बालक ने दिन अपने सामर्थ्य से पूरे अर्यावर्त का नेतृत्व किया। आइये आगे जानते हैं श्री कृष्ण से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें|

कृष्ण जन्माष्टमी 2020: तिथि एवं पूजा मुहूर्त

जन्माष्टमी 2020

11 अगस्त 2020

निशिथ पूजा– 00:04 से 00:48

पारण– 11:15 (12 अगस्त) के बाद

रोहिणी समाप्त- रोहिणी नक्षत्र रहित जन्माष्टमी

अष्टमी तिथि आरंभ – 09:06 (11 अगस्त)

अष्टमी तिथि समाप्त – 11:15 (12 अगस्त)

कब हुआ था कृष्ण का जन्म ?

भगवान कृष्ण का जन्म वसुदेव और देवकी के गर्भ में भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। भगवान विष्णु ने द्वापर युग में अपने अवतार लेने के दायित्व को निभाने के लिए वसुदेव और देवकी के पुत्र रूप में जन्म लिया। जिसे बाद में कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से मनाया जाने लगा। ज्योतिषीय रूप से उनके जन्म के समय रोहिणी नक्षत्र था इसलिए आज भी अगर भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र होता है तो उसे बहुत शुभ माना जाता है।

ऐसा था भगवान कृष्ण का जीवन, जन्माष्टमी पर जानिए कुछ विशेष बातें-

कृष्ण का बचपन ( कृष्ण के जन्म की कथा )
कृष्ण का जन्म देवकी और चंद्रवंशी क्षत्रिय राजा वसुदेव के यहां हुआ था। इससे पहले देवकी के भाई कंस ने इस भविष्यवाणी पर कि देवकी का आठवां पुत्र उसका काल होगा, देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया था। कंस एक पापी राजा था जिसके आतंक से प्रजा भी दुखी थी। इस तरह कंस देवकी के 6 संतानों को मार देता है किंतु 7वीं संतान योगमाया से बलराम के रूप में माता रोहिणी के गर्भ में जन्म लेती है और देवकी के गर्भ में भी योगमाया जन्म लेती है। जैसे ही योगमाया को कंस मारने की कोशिश करता है, योग माया उसके हाथ से छूटकर देवी के रूप में उसको चेतावनी देती है कि हे! कंस शीघ्र ही तेरा काल आने वाला है और अंतर्ध्यान हो जाती है। इसके बाद आठवें पुत्र के रूप में स्वयं भगवान कृष्ण का जन्म होता है। उनके जन्म लेते ही कारागार के ताले खुल जाते हैं, प्रहरी बेहोश हो जाते हैं। इसका फायदा उठाकर वसुदेव चुपके से शिशु कृष्ण को यमुना के पार ले जाकर नन्द गाँव नन्द बाबा और यशोदा मैया को सौंप आते हैं। यहाँ कृष्ण का लालन पालन होता है और बाल रूप में कृष्ण यहाँ कई बाल लीलाएं करते हैं। यहीं गोकुल नन्द गाँव में कृष्ण- राधा का मिलन होता है। जिनका प्रेम आने वाले युगों में एक अध्याय के तौर पर जुड़ जाता है।

कृष्ण का गीता ज्ञान जिसके वजह से कृष्ण को कहा जाता है योगेश्वर

कुरु क्षेत्र की युद्ध भूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध से पहले जो उपदेश दिया था उसे श्रीमद्भगवदगीता के नाम से जाना जाता है। गीता जीवन को जीने का सार है। इसमें कर्मयोग, कर्म योग, भक्ति योग, राजयोग, एक ईश्वरावाद आदि पर बहुत ही सुंदर तरीके से चर्चा की गई है। कर्तव्य निष्ठा के साथ जीवन यापन और व्यवहार, अपने कर्मों करते हुए भी अनासक्त कैसे बना जाए आदि कई गूढ़ रहस्य अर्जुन के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने बताए थे। इसमें वर्णित गूढ़ रहस्यों जैसे आत्मा क्या है, कर्मगति का रहस्य, कर्मों का प्रतिफल, आत्मा का परमात्मा से सम्बन्ध आदि बातों को उदघाटित किया गया है। इसलिए ही भगवान श्री कृष्ण को योगेश्वर भी कहा जाता है।

सम्पूर्ण आर्यावर्त का नेतृत्व करने वाले श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतारों में से एक हैं। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी बन कर पांडवों की विजय में लिखने वाले श्री कृष्ण का चरित्र अद्भुद है। इस जन्माष्टमी पर आइये योगेश्वर कृष्ण की हम सब मिलकर आराधना करें।

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