हिन्दू धर्म में गंगा को धार्मिक आस्था के रूप में सबसे बड़ी नदी और पवित्र नदी के रूप में माना जाता है। भारत में प्रत्येक सनातन धर्म को मानने वाले व्यक्ति के घर पर गंगाजल अवश्य मिल जाता है। जिसके पीछे इसके पौराणिक महत्त्व और दिव्य गुणों का होना पाया गया है |

धर्म तो गंगा को सदियों से पवित्र मानता आया है और इसके बखान अनेक पौराणिक कथाओं में भी वर्णित हैं। मृत्यु के सम्मुख व्यक्ति के मुख में गंगाजल डाला जाता है। मरने के बाद उस व्यक्ति की अस्थियों का विसर्जन भी गंगा में ही किया जाता है अर्थात गंगा का महत्व धार्मिक तो है परन्तु इसके पीछे गहरा वैज्ञानिक कारण भी है।

आइये जानते हैं गंगा जल के चमत्कारिक रहस्यों के पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण-

गंगाजल को कई वर्षों तक रखे रहने पर भी यह दूषित नहीं होता और अपनी शुद्धता बनाये रखता है। इसके औषधीय गुण कई बीमारियों में लाभदायक होते हैं। गंगाजल में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफ़ेज वायरस होते हैं। इसलिए जैसे ही पानी में बैक्टीरिया की संख्या बढ़ती है ये उन्हें समाप्त हो जाते हैं। गंगा जल निर्मलता इसे धार्मिक और वैज्ञानिक रूप से समृद्ध बनाती है।

गंगाजल में है कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता-

एक परीक्षण में यह पाया गया, जिसमें कि अनुसंधान टीम ने गंगाजल के तीन नमूने लिए- एक ताज़ा, दूसरा आठ साल पुराना और तीसरा सोलह साल पुराना इनमें ई-कोलाई बैक्टीरिया तीनों में ही जीवित नहीं रह पाया।

कैसे गंगाजल इतना शुद्ध रह पाता है ?

कई सारे अनुसंधानों और अध्ययनों के बाद भी अभी तक गंगाजल में ये बैक्टीरिया को नष्ट करने वाला तत्व कहाँ से आता है उसका पुख्ता पता नहीं चल पाया है। हालाँकि पवित्र गंगा कभी ख़राब न होने के पीछे एक तर्क यह भी दिया जाता है कि पवित्र गंगा के उद्गम से नदी के रूप में आने तक यह कई दुर्लभ जड़ी बूटी वाले मार्गों से गुजरती है। यहाँ इनके मिश्रण से जल कुछ ऐसा तत्व बन जाता है जो जल में ऑक्सीजन सोखने वाली अदभुद क्षमता विकसित कर देता है। इससे इसकी गंदगी को नष्ट करने की विलक्षण क्षमता बन जाती है।

गंगा नदी के उदगम को लेकर पौराणिक कथाएं

गंगा नदी के उद्भव को लेकर भागीरथ से जुड़ी पौराणिक कथा है। राजा सगर ने अपने तपस्या के बल से साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति की। एक दिन राजा सगर ने देव लोक को जीतने के लिए एक यज्ञ जिसके घोड़े को इंद्र ने चुरा लिया और पाताल लोक में ले जाकर कपिल मुनी के आश्रम में ले जाकर बाँध दिया।

जब सगर पुत्र उन्हें ढूंढते हुए पाताल लोक पहुंचे और घोड़े को बंधा हुआ पाया तो सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ऋषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं। उन्होंने ऋषि का अपमान किया। तपस्या कर रहे ऋषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जल कर वहीं भस्म हो गए। सगर के पुत्रों की आत्माओं को मुक्ति नहीं मिली, क्योंकि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया था।

इन्हीं के वंशज भगीरथ राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे। अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए उन्होंने गंगा को धरती पर लाने के लिए तपस्या की। भगीरथ ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुए और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिए तैयार हुए और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के भागीरथ के पूर्वजों सगर पुत्रों का उद्धार हो सके।

किंतु जब गंगा स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर सीधा गिरती तो उसके वेग से पृथ्वी पर नुकसान हो सकता था। इसलिए भागीरथ एक निवेदन पर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया। बाद में उनकी जटाओं से निकालकर धीरे धीरे पृथ्वी पर आई और सगर पुत्रों का उद्धार किया।

अंग्रेज, मुगल, राजे महाराजे भी करते थे गंगा के जल का सेवन –

जयपुर के महाराजा जब इंग्लैंड गए थे तो अपने साथ भारत से ही कई मण गंगा का पानी लेकर गए थे। मुगल सम्राट अकबर भी गंगा जल का सेवन करते ही थे ऐसा कई इतिहास कार बताते हैं। अँग्रेज़ जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था।

गंगा का हमारे धार्मिक ग्रंथो में जो महत्व है उसके पीछे केवल धार्मिक कारण ही नहीं है बल्कि वैज्ञानिक मान्यताएं भी हैं। शोधों और अध्ययनों से जो निष्कर्ष गंगाजल के लिए सामने आया है उससे इसके औषधीय गुणों का होना साबित हो चुका है।