वैदिक ज्योतिष में कुंडली मिलाने के लिए अष्टकूटों में 36 गुणों को परिभाषित किया गया है। विवाह से पूर्व जब जातकों की कुंडली मिलाई जाती है तो उसमें कुडंली के इन गुणों का मिलान किया जाता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में इन कुंडलियों में दोष उत्पन्न हो जाता है जैसे मंगल दोष, नाड़ी दोष, भकूट दोष इत्यादि।

क्या होता है दोष परिहार ?

कुंडली में उत्पन्न दोषों का प्रभाव कुछ विशेष परिस्थियों में नष्ट मान लिया जाता है जिसे दोष परिहार ( cancellation of dosh) के नाम से जाना जाता है।

कई बार 36 में से 36 गुण मिलने पर भी वैवाहिक जीवन में परेशानी आ सकती है। इसका कारण गुण मिलान तो हो जाता है लेकिन जन्म कुंडली का आकलन नहीं करते। यदि बारीकी से अध्ययन करें तो अधिकतर कुंडलियों में गुण मिलान दोषों या मांगलिक दोषों का परिहार स्वत: ही हो जाता है जिनको कुंडली मिलान या गुण मिलान में ज्योतिषियों को ध्यान रखना चाहिए।

कब कब हो जाता है दोष परिहार (Cancellation of Dosha) ?

1. गण दोष परिहार :

  • चंद्र राशि स्वामियों में मित्रता या राशि स्वामियों के नवांशपति अलग अलग होने पर गणदोष समाप्त हो जाता है ।
  • ग्रहमैत्री और वर-वधु के नक्षत्रों की नाड़ियाँ अलग अलग होने पर भी इस दोष का परिहार हो जाता है।
  • यदि वर-वधु की कुंडली में तारा, वश्य, योनि, ग्रहमैत्री तथा भकूट दोष नहीं हैं इस स्थिति में सभी तरह के दोष निरस्त मान लिए जाते हैं।

2. नाड़ी दोष का परिहार :

नाड़ी दोष का भी कुछ विशेष स्थितियों में परिहार हो जाता है।

  • वर तथा वधु की राशि एक ही हो लेकिन नक्षत्र भिन्न भिन्न हों तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है।
  • वर-वधु का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो तब भी यह दोष निरस्त हो जाता है
  • दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो एवं चरण भिन्न-भिन्न हों इस स्थिति में इस दोष का परिहार होता है
  • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए, वर्णदोष क्षत्रियों के लिए, गण दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष शूद्रों के लिए मान्य होता है।

3. मंगल दोष परिहार :

  • मंगल के साथ चन्द्र,गुरु या शनि में से कोई भी एक ग्रह हो अथवा शनि की पूर्ण दृष्टि बन रही हो तो इस स्थिति में मंगल दोष परिहार हो जाता है।
  • यदि केंद्र त्रिकोण में गुरु हो या केंद्र में चन्द्रमा हो अथवा 6 से 11वें भाव में राहु हो। इसके साथ ही मंगल के साथ राहु अथवा मंगल को गुरु देखता हो अथवा मंगल से दूसरा शुक्र हो, ये सभी स्थितियां भी मंगल दोष निरस्त करती है
  • गुरु बलवान हो, शुक्र लग्न या 7 वां हो, मंगल वक्री नीच या शत्रु के घर का हो या अस्त हो तो भी दोष समाप्त हो जाता है ।