ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जब विवाह किया जाता है जो जातकों की कुंडली का मिलान आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए। कुंडली मिलान में अष्टकूटों का मिलान किया जाता है जिनके कुल 36 अंक माने जाते हैं। इनमें से विवाह के लिए कुंडली में 36 गुण में से कम से कम 18 गुणों का मिलान होना आवश्यक है। इससे कम मिलान होने पर विवाह को वर्जित माना जाता है।

अष्टकूट का मिलान क्यों जरूरी है ?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अष्टकूट माने गए हैं जिनके नाम हैं वर्ण, वश्य, तारा, योनी, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी।

जानते हैं क्या होती है नाड़ी-

नाड़ी व्यक्ति के जन्म कुंडली में चंद्रमा की किसी नक्षत्र के साथ उपस्थित को दर्शाती है। कुल 27 नक्षत्रों में से 9 नक्षत्र ऐसे हैं जिनमें चंद्रमा के स्थित होने पर व्यक्ति की नाड़ी निर्धारित की जा सकती है।

तीन प्रकार की नाड़ियाँ होती हैं, जो हैं-

1। आदि नाड़ी

2। मध्य नाड़ी

3। अन्त्य नाड़ी

जानिये कैसे निर्धारित होती है जातक की नाड़ी-

● ज्येष्ठा, मूल, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, शतभिषा, पूर्वा भाद्र और अश्विनी नक्षत्रों की गणना आदि या आद्य नाड़ी में की जाती है।

● पुष्य, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, भरणी, घनिष्ठा, पूर्वाषाठा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्र नक्षत्रों की गणना मध्य नाड़ी में की जाती है।

● स्वाति, विशाखा, कृतिका, रोहणी, अश्लेषा, मघा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण और रेवती नक्षत्रों की गणना अन्त्य नाड़ी में की जाती है।

नाड़ी मिलान:

नाड़ी मिलान की प्रक्रिया में 8 गुण निर्धारित किये जाते हैं। नाड़ी दोष होने पर 8 में से 0 अंक दिए जाते हैं जबकि अगर वर-वधु की नाड़ियाँ भिन्न-भिन्न हो तो 8 में से 8 अंक दिए जाते हैं। नाड़ी दोष की स्थिति वर वधु के जीवन में दुष्प्रभावों को जन्म देती है। इनके बीच सामंजस्य का अभाव और अलगाव तक की नौबत आ सकती है।

अब जानिए की नाड़ी दोष किन स्थितियों में लगता हैं –

विवाह के लिए जब जातकों की कुंडलियों का अध्ययन किया जाता है तो उसमे नाड़ी का विश्लेषण आवश्यक रूप से किया जाता है। अगर दोनों जातकों के नक्षत्र एक ही नाड़ी में हो तो यह दोष लगता है। इस दोष के होने पर विवाह को शुभ नहीं माना जाता। इससे अलगाव की स्थिति बन जाती है।

● वर वधु की नाड़ी आदि हो तो विवाह विच्छेद

● मध्य नाड़ी हो तो मृत्यु भय और

● अन्त्य नाड़ी हो तो दुःख का कारण बन सकती है। ऐसे जातकों की संतान का स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है।

किन परिस्थितियों में नाड़ी दोष नहीं माना जाता-

● वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक ही हो परंतु दोनों के चरण पृथक हों तो नाड़ी दोष निरस्त हो जाता है

● एक राशि के जातक हों परन्तु उनके जन्म नक्षत्र भिन्न-भिन्न हों तो भी नाड़ी दोष अमान्य हो जाता है

● वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन राशियां अलग-अलग हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है

● शुक्र बृहस्पति अथवा बुद्ध अगर एक राशि के स्वामी होते है ये स्थिति भी नाड़ी दोष को निरस्त करती है

नाड़ी दोष का उपचार :

कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं जब विवाह के बाद नाड़ी दोष का पता चलता है। इसके अलावा कुछ विशेष परिस्थितियों में जहाँ नाड़ी दोष होने के बाद भी विवाह नहीं रोका जा सकता, तब इसके निवारण के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ उपाय बताये गए हैं। आइये

जानते हैं नाड़ी दोष का उपाय:

● पीयूष धारा में बताये उपाय के अनुसार सोने का सांप बनाकर उसकी विशेषज्ञों से विधिवत पूजा करवाएं। महामृत्युंजय मन्त्र का पाठ किया जाना चाहिए। जप करने के बाद अपनी योग्यता व क्षमता के अनुसार सोना, वस्त्र अथवा अन्न का दान देना चाहिए।

● भगवान शिव की आराधाना और महामृत्युंजय मन्त्र का जाप हर तरह की बाधा को दूर करता है।

● सालगिरह पर अपने वजन के बराबर अन्न दान करना चाहिए। ब्राह्मणों को वस्त्र और अन्न दान करवाना चाहिए।

● मारकेश की दशा होने पर, वर-वधू दोनों मे से जिसके मे भी मारकेश की दशा चल रही हो उसे दशनाथ का उपाय दशाकाल तक करना चाहिए।

जातकों के विवाह करने से पहले कुंडली का विश्लेषण विशेषज्ञ ज्योतिषी से ही करवाना चाहिए। कुंडली के किसी भी प्रकार दोषों के निवारण के लिए आप विशेषज्ञों से सलाह ले सकते हैं।