आध्यात्मिक परिभाषा के अनुसार शरीर रथ है एवं आत्मा इस रथ की सारथी है। शास्त्रों में इसी रथ एवं आत्मा के शुद्धिकरण के लिए पूजा विधान, व्रत उपवास आदि प्रकियाएं बताई गई है।

हमारे मन पर भोजन का असर पड़ता है, जिस प्रकार का भोजन हम करते उसकी ऊर्जा हमारे आचरण को प्रभावित करती है। इसलिए इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि भोजन सकारात्मक ऊर्जा वाला हो। इसी बात को ध्यान में रखते हुए व्रत और उपवास करने का प्रावधान रखा गया है जिसका अर्थ मन के विचारों का नियंत्रण एवं भोजन में संयम के साथ शरीर की शुद्धि है। जिससे हमारे मन और तन को मजबूती मिलती है।

व्रत और उपवास में अंतर

शास्त्रों में तपस्या, संयम और नियमों को व्रत का समानार्थक माना है। व्रत का अर्थ सात्विक भोजन दिन में एक समय करते हुए आत्मबोध करना। मन के शुद्धिकरण के द्वारा चिन्तन को सकारात्मक बनाना। उपवास का शाब्दिक रूप ‘उप’ समीप और ‘वास’ का अर्थ बैठना है यानि परमात्मा का ध्यान लगाना जिससे मन, वचन और कर्मों को शुद्धि करना। उपवास में पूर्णत: निराहार रहना पड़ता है और केवल एक समय फलाहार किया जाता है।

व्रतों के कितने प्रकार होते हैं:

सूर्य और चंद्र तिथि के अनुसार व्रतों के कई प्रकार बताए गए हैं। हालांकि सभी तरह के व्रतों को मुख्यत: 3 भागों में बांटा गया है-

तीन प्रकार के व्रत माने गए हैं-

  • नित्य व्रत : सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति का संकल्प लेना इत्यादि नित्य व्रत के रूप माने गए हैं। जीवन चर्या में इन नियमों का पालन करने से मनुष्य का आचरण शुद्ध होता है।
  • नैमिक्तिक व्रत : किसी विशेष परेशानी या निमित्त के लिए इस तरह के व्रत किये जाते हैं। चांद्रायण प्रभृति, तिथि विशेष में जो ऐसे व्रत किए जाते हैं जिनको नैमेत्तिक व्रत कहा जाता है।
  • काम्य व्रत : मनोकामना पूर्ति , जैसे पुत्र प्राप्ति, धन-धान्य, समृद्धि या अन्य सुखों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले व्रत काम्य व्रत हैं।

प्रमुख तिथि के उपवास और उनका महत्त्व:

व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी ,पूर्णिमा, अमावस्या और नवरात्रि के माने जाते हैं।धार्मिक दृष्टि से कार्यसिद्धि, मनोरथ एवं किसी देवी-देवता की अराधाना के लिए भी व्रत उपवास आदि किये जाते हैं। उपवास के दौरान सात्विक भोजन किया जाता है जो हमारे मन को शांत करता है।

एकादशी व्रत :

पौराणिक ग्रंथों में एकादशी के उपवास को सर्वाधिक महत्व का बताया गया है। इसको करने से मन से दुर्भावनाएं दूर होकर सकारात्मक असर होता है जिससे आत्मिक उन्नति होती है।

  • एकादशी का नियमित व्रत रखने से मन कि चंचलता समाप्त होती है तथा धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
  • किसी विशेष उद्देश्य को ध्यान में या व्रत-उपवास रखना चाहते हैं तो इसके लिए आप एकादशी के व्रत रखें। बेहतर होगा।
  • भगवान विष्णु या कृष्ण की पूजा करें। विष्णु सहस्त्रनाम या श्रीमदभागवत का पठन करें।
  • (बच्चों के मानसिक विकास के लिए भी ये व्रत उनके माता-पिता कर सकते हैं) बच्चों की चंचलता को शांत करने के लिए माता-पिता उनके नाम से ये व्रत कर सकते हैं। इतना ही नहीं इस तिथि पर व्रत रखने वालों को धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
पूर्णिमा व्रत :

चंद्रमा को ज्योतिष शास्त्र में मन का स्वामी कहा गया है। इसलिए मन से जुड़े विकारों में, शरीर की व्याधियों में चंद्रमा की शुभ अशुभ दृष्टि कारण बन सकती है।

  • पूर्णिमा या अमावस्या का व्रत करने से मानसिक सुरक्षा मिलती है जिससे मनोविकार दूर होते हैं।
  • पूर्णिमा या अमावस्या का व्रत करने से शरीर में हार्मोन संतुलित रहते हैं।
नवरात्रि व्रत:

हिंदू माह अनुसार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन मान में नवरात्रि आती है। उक्त प्रत्येक माह की प्रतिपदा यानी एकम् से नवमी तक का समय नवरात्रि का होता है।

  • वर्ष में चार नवरात्रियाँ आती हैं जो ऋतुपरिवर्तन को इंगित करती हैं। इनमें से दो गुप्त नवरात्र और दो नवरात्र प्रत्यक्ष नवरात्र माने गए हैं। इस समय शरीर की धातुओं को संतुलित करने के लिए नवरात्रि व्रत का विधान बनाया गया।
  • वर्ष में केवल दो नवरात्रियों, चैत्र व अश्विनी का उपवास रखने मात्र से ही आप अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकते हैं और वर्ष भर स्वस्थ रह सकते हैं।
सोमवार व्रत :

सोमवार को आशुतोष भगवान शिव का विशेष दिन माना जाता है। इस दिन व्रत उपवास और पूजा करने से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर कष्टों को दूर करते हैं।

  • मनचाहे जीवनसाथी प्राप्ति के लिए ये व्रत अति उत्तम माना गया है।
  • शिवलिंग पर जल व दूध का अभिषेक करें एवं बेलपत्र चढ़ाएं।
  • शिव-पार्वती की पूजा करें व पार्वती मंगल का पाठ करें।
  • इसके अलावा आप मासिक शिवरात्रि प्रदोष का व्रत भी कर सकते हैं। ये भी भगवान शिव को प्रसन्न करने का व्रत माना गया है।
श्रावण व्रत :

यह व्रत भी भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए है। पूरे श्रावण मास में व्रत रखने का विधान है। शास्त्रानुसार जो लोग चतुर्मास करते हैं उन्हें जिंदगी में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता है। श्रावण माह में व्रत रखने से हर तरह के शारीरिक और मानसिक रोग दूर हो जाते हैं।

शुक्रवार व्रत: धन तथा समृद्धि के लिए

मां लक्ष्मी की आराधना का यह व्रत सभी प्रकार की सुख समृद्धि को देने वाला है।

  • शुक्रवार व्रत रखें और सफ़ेद खाद्य पदार्थ ग्रहण करें नमक एवं खट्टी चीज़ों का सेवन न करें

इन सब व्रतों के अलावा त्यौहारों से जुड़े व्रत जैसे करवा चौथ, अन्य सप्ताह से जुड़े व्रत करने का प्रावधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है। व्रत और उपवास का उद्देश्य हमारे मन को शांत और सकारात्मक सोच से भरने के उद्देश्य से किये जाते हैं। शास्त्रोक्त विधि से किये गए पूजा विधान, व्रत व उपवास से विशेष लाभ प्राप्त होता है।

इसके अलावा कुंडली के विभिन्न ग्रहों के विश्लेषण के आधार पर भी विशेष उपाय बताए जाते हैं। कुंडली विश्लेषण के लिए सम्पर्क करें।