जानिये, श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व व पूजा विधि नियम

हिन्दू धर्म में श्री कृष्ण जन्माष्टमी बेहद महत्वपूर्ण व लोकप्रिय त्यौहार है। भगवान श्री कृष्ण के भक्त इस त्यौहार को कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में पूर्ण श्रद्वा भावना के साथ धूमधाम से मनाते हैं। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी मनाई जाती है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी तिथि व मुहूर्त

श्री कृष्ण जन्माष्टमी तिथि 24 अगस्त, शनिवार 2019
निशिथ पूजा 00:01 से 00:45
अष्टमी तिथि आरंभ 08:08 (23 अगस्त)
अष्टमी तिथि समाप्त 08:31 (24 अगस्त)

पौराणिक महत्व — धर्म ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी पर जन्म लेकर धरती को कंस नामक राक्षस से मुक्ति दिलवाई थी।

इस तरह रखा जाता है व्रत — श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्ण भक्त ​सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेते हैं और रात्रि को बारह बजे बाद श्री कृष्ण मंदिरों में दर्शनों के बाद ही घर आकर व्रत का समापन किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति के जीवन में सुख—समृद्वि का संचार होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ पुण्य की भी प्राप्ति होती हैं।

मथुरा—वृंदावन में विशेष कार्यक्रम — पौराणिक ग्रंथो में मथुरा व वृंदावन में श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसलिए भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित मथुरा व वृंदावन में श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं और देश—विदेश से लाखों श्रद्वालु इस अवसर पर मंदिरों में होने वाले आयोजनों को देखने के लिए यहां पहुंचते हैं।

मंदिर में भजन—कीर्तन व घर में पूजा पाठ — जन्माष्टमी पर दिनभर मंदिरों में श्री कृष्ण के भजन कीर्तनों की प्र​स्तुतियां दी जाती हैं और देर रात जन्मोत्सव तक ये कार्यक्रम जारी रहते हैं। रात्रि में लगभग बारह बजे कृष्ण जन्मोत्सव के बाद घरों के मंदिर में श्री कृष्ण की मूर्ति,चित्र के समक्ष विधिवत पूजा पाठ व भगवान को स्नान कराने के बाद प्रसाद चढाया जाता है और व्रत का समापन किया जाता है।